प्रश्न. 1. माटी का रंग प्रयोग करते हुए किस बात की ओर संकेत किया गया है?
उत्तर: कवयित्री ने ‘माटी का रंग’ प्रयोग करके स्थानीय विशेषताओं को उजागर करना चाहा है। संथाल परगने के लोगों में जुझारूपन, अक्खड़ता, नाच-गान, सरलता आदि विशेषताएँ जमीन से जुड़ी हैं। कवयित्री चाहती है कि आधुनिकता के चक्कर में हम अपनी संस्कृति को हीन न समझे। हमें अपनी पहचान बनाए रखनी चाहिए।
प्रश्न, 2. भाषा में झारखंडीपन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर: झारखंडी’ का अभिप्राय है- झारखंड के लोगों की स्वाभाविक बोली। कवयित्री का मानना है कि यहाँ के लोगों को अपनी क्षेत्रीय भाषा को बाहरी भाषा के प्रभाव से मुक्त रखना चाहिए। उसके विशिष्ट उच्चारण व स्वभाव को बनाए रखना चाहिए।
प्रश्न. 3. दिल के भोलेपन के साथ-साथ अक्खड़पन और जुझारूपन को भी बचाने की आवश्यकता पर क्यों बल दिया गया है?
उत्तर: दिल का भोलापन सच्चाई और ईमानदारी के लिए जरूरी है, परंतु हर समय भोलापन ठीक नहीं होता। भोलेपन का फायदा उठाने वालों के साथ अक्खड़पन दिखाना भी जरूरी है। अपनी बात को मनवाने के लिए अकड़ भी होनी चाहिए। साथ ही कर्म करने की प्रवृत्ति भी आवश्यक है। अत: कवयित्री भोलेपन, अक्खड़पन व जुझारूपन-तीनों गुणों को बचाने की आवश्यकता पर बल देती है।
प्रश्न. 4. प्रस्तुत कविता आदिवासी समाज की किन बुराइयों की ओर संकेत करती है?
उत्तर: कविता में प्रकृति के विनाश एवं विस्थापन के कठिन दौर के साथ-साथ संथाली समाज की अशिक्षा, कुरीतियों और शराब की ओर बढ़ते झुकाव को भी व्यक्त किया गया है जिसमें पूरी-पूरी बस्तियाँ डूबने जा रही हैं।
प्रश्न. 5. इस दौर में भी बचाने को बहुत कुछ बचा है-से क्या आशय है?
उत्तर: कवयित्री का कहना है कि आज के विकास के कारण भले ही मानवीय मूल्य उपेक्षित हो गए हों, प्राकृतिक संपदा नष्ट हो रही है, परंतु फिर भी बहुत कुछ ऐसा है जिसे अपने प्रयत्नों से बचा सकते हैं। लोगों का विश्वास, उनकी टूटती उम्मीदों को जीवित करना, सपनों को पूरा करना आदि ऐसे तत्व हैं, जिन्हें सामूहिक प्रयासों से बचाया जा सकता है।
प्रश्न. 6. निम्नलिखित पंक्तियों के काव्य-सौंदर्य को उद्घाटित कीजिए:
(क) ठंडी होती दिनचर्या में,
जीवन की गर्माहट
(ख) थोड़ा-सा विश्वास
थोड़ा-सी उम्मीद
थोड़े-से सपने
आओ, मिलकर बचाएँ।
उत्तर:
(क) इस पंक्ति में कवयित्री ने आदिवासी क्षेत्रों में विस्थापन की पीड़ा को व्यक्त किया है। विस्थापन से वहाँ के लोगों की दिनचर्या ठंडी पड़ गई है। हम अपने प्रयासों से उनके जीवन में उत्साह जगा सकते हैं। यह काव्य पंक्ति लाक्षणिक है। इसका अर्थ है-उत्साहहीन जीवन। ‘गर्माहट’ उमंग, उत्साह और क्रियाशीलता का प्रतीक है। इन प्रतीकों से अर्थ गंभीर्य आया है। शांत रस विद्यमान है। अतुकांत अभिव्यक्ति है।
(ख) इस अंश में कवयित्री अपने प्रयासों से लोगों की उम्मीदें, विश्वास व सपनों को जीवित रखना चाहती है। समाज में बढ़ते अविश्वास के कारण व्यक्ति का विकास रुक-सा गया है। वह सभी लोगों से मिलकर प्रयास करने का आहवान करती है। उसका स्वर आशावादी है। ‘थोड़ा-सा’; ‘थोड़ी-सी’ वे ‘थोड़े-से’ तीनों प्रयोग एक ही अर्थ के वाहक है। अतः अनुप्रास अलंकार है। दूर्द (उम्मीद), संस्कृत (विश्वास) तथा तद्भव (सपने) शब्दों को मिला-जुला प्रयोग किया है। तुक, छंद और संगीत विहीन होते हुए कथ्य में आकर्षण है। खड़ी बोली है।
प्रश्न. 7. बस्तियों को शहर की किस आबो-हवा से बचाने की आवश्यकता है?
उत्तर: बस्तियों को शहर की नग्नता व जड़ता से बचाने की जरूरत है। स्वभावगत, वेशभूषा व वनस्पति विहीन नग्नता से बचाने का प्रयास सामूहिक तौर पर हो सकता है। शहरी जिंदगी में उमंग, उत्साह व अपनेपन का अभाव होता है। शहर के लोग अलगाव भरी जिंदगी व्यतीत करते हैं।
कविता के आस-पास
प्रश्न. 1. आप अपने शहर या बस्ती की किन चीज़ों को बचाना चाहेंगे?
उत्तर: छात्र स्वयं करें।
प्रश्न. 2. आदिवासी समाज की वर्तमान स्थिति पर टिप्पणी करें।
उत्तर: आदिवासी समाज आज स्वयं को आधुनिक बनाने के चक्कर में अपनी मौलिकता खो रहा है। स्वयं को पिछड़ा मानकर हीनभाव से ग्रस्त हो वे अपनी धरती की गंध भूलते जा रहे हैं, पर आज भी वहाँ शिक्षा और कुरीतियों के कारण पीढ़ियाँ बिगड़ रही हैं।